इंसानियत जिंदा है – एवरेस्ट की चोटी पर भी !

इंसानियत
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अपने सपने और ५० पाउंड के उपकरण लेकर, मई २०१२ के अंत में तापमान शून्य से ५८ डिग्री सेल्सियस कम था, इजराइल (यरूशलेम) में जन्मे २४ वर्षीय नदाव बेन येहुदा (Nadav Ben Yehuda) माउंट एवरेस्ट के २९,०२८ फुट ऊंचे शिखर पर पहुंचने के कुछ ही घंटों के भीतर थे ! पर्वतारोही नदाव बेन येहुदा ने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी यानी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने की कोशिश तब छोड़ दी, जब वह एवरेस्ट पर चढ़ने से केवल तीन सौ मीटर दूर थे ! क्योंकि नदाव ने अपने व्यक्तिगत रिकॉर्ड, प्रसिद्धि, उपलब्धियों को गौण, और मूल्यों और संस्कृति को सर्वोच्च रखकर एक अन्य पर्वतारोही की जान बचाने के लिए “संवेदनात्मक” काम किया ! तब से दुनिया को ये एहसास हुआ कि इंसानियत जिंदा है – एवरेस्ट की चोटी पर भी !

जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जब आपको खुद से पूछना पड़ता है कि आप किस तरह के व्यक्ति हैं, आपकी मूल्य प्रणाली क्या है और आप उन मूल्यों के लिए कितना त्याग या भुगतान कर सकते हैं ! ऐसे कठिन क्षण में, एवरेस्ट पर चढ़ने वाले सबसे कम उम्र के इजरायली पर्वतारोही नदाव ने मानवता के सर्वोच्च मूल्य को प्राथमिकता देने के लिए सम्मान और प्रसिद्धि छोड़ दी और दुनिया को एक सबक सिखाया ! पर्वतारोहण के साहसिक खेल के उच्च मूल्य को पहचानते हुए उन्होंने ऐसा करने में अद्वितीय साहस दिखाया !

Nadav Ben Yehuda

असल जिंदगी की घटना !

एक ओर सम्मान, व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की पूर्ति, सर्वोच्च शिखर पर पहुँचने के व्यक्तिगत स्वप्न की पूर्ति और दूसरी ओर दूसरे मनुष्य के जीवन को बचाने का असंभव प्रयास, जिसमें उपरोक्त सम्मान, प्रसिद्धि, महत्वाकांक्षा की पूर्ति का बलिदान देना था ! और एक भयानक संभावना भी थी और वह ये थी अपनी जान गँवाना ! लेकिन नियति ने जो बेहद कठिन परीक्षा नदाव के लिए तय की थी, उसमें वह सफल रहे और वह अच्छे परिणाम के साथ उत्तीर्ण हुए ! इस कार्य के लिए उन्हें स्वयंसेवा समारोह के लिए इजराइल राष्ट्रपति पुरस्कार में राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया ! २०१२ के उस चढ़ाई सीज़न के दौरान, माउंट एवरेस्ट पर ११ पर्वतारोहियों की मृत्यु हो गई थी ! आइए इस असल जिंदगी की घटना को विस्तार से जानते हैं।

पर्वतारोही के अपने शब्दों में !

नदाव बेन येहुदा के अपने शब्दों में – “एवरेस्ट पर चढ़ते समय मैंने दो पर्वतारोहियों की लाशें देखीं, जिनकी अभी-अभी मौत हुई होगी ! वे उसी रस्सी से लटक रहे थे जिस पर मैं चढ़ रहा था ! थकान के कारण वे जहां थे वहीं लंगर डाले हुए थे और संभवत: कोमा में मर गए थे ! हर कोई उनको क्रॉस करते , वही छोड़ के आगे जा रहा था ! और फिर मैंने उसे देखा – तुर्की (तुर्कस्तान) से आयडिन इरमाक – Aydin Irmak, ४६ ! हम शिविर में मिले थे और अब वह बिना हेलमेट, बिना ऑक्सीजन मास्क, बिना दस्ताने के अंत की प्रतीक्षा कर रहा था ! कुछ अन्य पर्वतारोही ने उसे देखा ! नजरअंदाज किया और आगे बढ़ गए ! लेकिन मैं इसे नजरअंदाज नहीं कर सका ! और मैंने एक व्यक्तिगत रिकॉर्ड और दूसरे आदमी की जान बचाना , इस मे से दूसरे ऑप्शन को चूना !

नदाव ने ये निर्णय लिया तो था लेकिन इसे अमल में लाना उतना ही मुश्किल काम था ! बेहोश आयडिन को नीचे ले जाना एक कठिन काम था, क्योंकि उसे अपना और साथ में आयडिन का भी बोझ उठाना था। आयडिन बेहोश था और उसका वजन अधिक लग रहा था ! कभी-कभी वह निंद से जग जाता था लेकिन असहनीय दर्द से चिल्लाता था ! नीचे आते समय नदव का खुद का ऑक्सीजन मास्क फट गया ! दस्ताने उतारने पड़े, तो उसकी उंगली पर शीतदंश हो गया। रास्ते में उनकी मुलाकात एक अन्य मलेशियाई पर्वतारोही से हुई जो मरने के कगार पर था ! नदव, ऊपर जा रहे कुछ पर्वतारोहियों से दोनों हताश पर्वतारोहियों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर मिलाने में कामयाब रहे ! और नौ घंटे के भागीरथ प्रयास के बाद वह उन दोनों को शिविर तक ले जाने में कामयाब रहे ! वहां से हेलीकॉप्टर से उन दोनो घायल पर्वतारोही को काठमांडू ले जाकर अस्पताल में भर्ती कराया गया और इलाज शुरू हुआ ! नदाव दो जिंदगियां बचाने में सफल रहे !

१९० पाउंड के इरमाक को बचाने का निर्णय लेने के बाद, बेन येहुदा ने इरमाक के लगभग बेजान शरीर को अपने हार्नेस से बांध दिया और उसे आठ घंटे दूर पहाड़ से बेस कैंप तक खींच लिया। इरमाक के बैकपैक के अंदर एक तुर्की झंडा था जिसे उसने दुनिया के शीर्ष पर पहुंचने पर फोटो खिंचवाने के दौरान पकड़ने का इरादा किया था। बेन येहुदा ने रास्ते में इरमाक को अपने कंधों पर उठाया और इरमाक को लिए हुए, नीचे उतरते समय और एक घायल पर्वतारोही को अपने पैरों के बीच पकड़ लिया ! कभी-कभी वे एक-दूसरे के ऊपर फिसल जाते थे और एक बार तो ५० गज की दूरी तक गिर गए थे !

उस दिन एवरेस्ट पर वास्तव में क्या हुआ था ?

नदाव बेन येहुदा का छोटा सा परिचय !

नदव बेन येहुदा (जन्म २९ फरवरी १९८८ ) एक इजरायली पर्वतारोही, खोज और बचाव पेशेवर, फोटोग्राफर और वक्ता हैं ! वह माउंट अन्नपूर्णा १ पर चढ़ने वाले पहले इजरायली और ८००० मीटर से अधिक ऊंचे पहाड़ों पर चढ़ने वाले एकमात्र इजरायली हैं !

बेन येहुदा ने यरूशलेम में अपना जीवन शुरू किया था ! दो साल की उम्र में, बेन येहुदा अपने माता-पिता के साथ रेहोवोट चले गए ! उनके पिता आईडी एफ के मुख्य मनोवैज्ञानिक बने, उनकी माँ पास के शहर होलोन की डिप्टी मेयर बनीं ! नादव को देश की गुफाओं और उसके मीठे पानी के स्थानों की खोज करना पसंद था ! पांच बच्चों में सबसे बड़े, उनके दो भाई और दो बहनें हैं ! एक किशोर के रूप में आउटडोर कौशल हासिल करते हुए, उन्होंने अन्य युवा देशवासियों को, उनके वाक्यांश में, “सुपर-इजरायली” बनने के लिए प्रशिक्षण देना शुरू किया ! सायरेट गोलानी कमांडो यूनिट के सदस्य के रूप में आईडीएफ में सैन्य सेवा के दौरान उन्होंने अधिक आउटडोर कौशल हासिल किए ! बेन येहुदा की एवरेस्ट की चढ़ाई तीन महीने तक चली – मार्च से जून – २०१२ – तक।

नदाव बेन येहुदा और आयडिन इरमाक की पहली मुलाक़ात !

बेस कैंप में येहुदा की दोस्ती ४६ वर्षीय तुर्की में जन्मी, निःसंतान तलाकशुदा इरमाक से हो गई ! इरमाक तीन साल तक दुनिया भर में साइकिल चलाने से पहले दो दशकों तक संयुक्त राज्य अमेरिका में रहे थे ! इरमाक ने एक दूसरे से अंग्रेजी में बात करते हुए बेन येहुदा को “मेरा भाई” कहा ! अपने पहले पर्वत पर चढ़ने के बाद, इरमाक की एवरेस्ट पर चढ़ने वाला १५वां तुर्की व्यक्ति बनने की उम्मीद थी !

एवरेस्ट पर गतिविधियाँ कैसे हुईं ?

अंतिम चढ़ाई के लिए, बेन येहुदा काफी हद तक अकेले थे ! वह रात १० बजे शिखर से लगभग ३,००० फीट की दूरी पर, एवरेस्ट के दक्षिण क्षेत्र के सबसे ऊंचे स्टेशन, कैंप फोर से शीर्ष के लिए अंतिम प्रयास करने वाले थे – १८ मई को ! आखिरी मिनट में, उन्होंने १०० या उससे अधिक अन्य एवरेस्ट पर्वतारोहियों – हार्ड-कोर और नौसिखिए – की बाधा को दूर करने के लिए अपना प्रस्थान २४ घंटे के लिए स्थगित कर दिया ! वह जानते थे कि मौसम ख़राब होगा लेकिन वह तेज़ी से यात्रा कर सकेंगे ! अपने शिखर ऑक्सीजन का उपयोग न करने का चयन करते हुए, उन्होंने साथी पर्वतारोहियों से ऑक्सीजन “चूस” लिया !

शिखर तक पहुंचने के आखिरी दो घंटों में उन्होंने न तो खाना खाया और न ही कोई स्लीपिंग बैग लिया और उनके साथ केवल एक मार्गदर्शक शेरपा पेम्बा ही थे ! बेन येहुदा उनको बताते हैं, “आपका शरीर बंद हो रहा है !” “तुम्हें स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा है क्योंकि तुम्हें चक्कर आ रहा है ! विचार यह है कि जितनी जल्दी हो सके शिखर पर पहुंचें !” रात १० बजे प्रस्थान ! १९ मई को कैंप फोर से, उन्हें सुबह ६ बजे सूर्योदय तक दुनिया के शीर्ष पर पहुंचने की उम्मीद थी ! अंतिम चढ़ाई के दौरान, बेन येहुदा अपने गाइड से बहुत आगे रहे ! इज़रायली ने चश्मा, एक हेडलैम्प, बर्फ पर पकड़ हासिल करने के लिए ऐंठन और एक बैकपैक पहना था ! अँधेरे में आगे बढ़ते हुए, उसने दूर से जमीन पर बर्फ गिरने की आवाज़ सुनी : हिमस्खलन ! प्रस्थान करने के तीन घंटे बाद, उसकी मुलाकात इरमाक से हुई, जो मर रहा था !

नदाव बेन येहुदा ने इरमाक को कैसे बचाया?

कुछ क्षण पहले, वह दो लापरवाह पर्वतारोहियों के पास से गुजरा था और यह देखने के लिए जाँच की थी कि उनमें से कोई जीवित है या नहीं ! वे नहीं थे ! इरमाक को देखने पर, बेन येहुदा का पहला विचार शिखर तक पहुंचने का था, फिर नीचे उतरने में उसकी सहायता करना था ! उन्होंने तुरंत ऐसी योजना पर वीटो कर दिया: “मुझे पता था कि अगर मैं शिखर पर चढ़ता रहा, तो उन्हें कभी भी जीवित रहने का मौका नहीं मिलेगा”! बेन येहुदा ने इरमाक को हिलाया ! तुर्क थोड़ा कराह उठा, यह दर्शाता है कि वह अभी भी जीवित है ! “जब मुझे एहसास हुआ कि मैं उस आदमी को जानता हूं, तो वह मुसीबत में फंसे आदमी जैसा नहीं था, बल्कि मुसीबत में फंसा एक दोस्त था” ! लेकिन, यह जानते हुए कि वह शिखर पर पहुंचने के अपने सपने को छोड़ रहा है, एक क्षण के लिए मन क्रोधित हो गया और इरमाक पर चिल्लाया, “तुम हमें मार रहे हो। तुम मुझे मार रहे हो।”

इरमाक को अपने हार्नेस से जोड़कर, बेन येहुदा ने सुरक्षा के लिए आठ घंटे की उतराई शुरू की ! अपनी उंगलियों का उपयोग करने में सक्षम होने के लिए, बेन येहुदा ने अपने दाहिने हाथ को ढकने वाले तीन दस्ताने में से दो को हटा दिया ! जिससे लगभग तुरंत शीतदंश हो गया ! जिसके कारण अभी भी आंशिक विच्छेदन (amputation) हो सकता है ! तीस मिनट बाद, बेन येहुदा का ऑक्सीजन मास्क टूट गया और उनके दो ऑक्सीजन सिलेंडर जम गए ! “वह सच्ची घबराहट का एक क्षण था,” वह अपनी आवाज में स्पष्ट भाव के साथ याद करते हैं !

वहां दोनों पर्वतारोही माउंट एवरेस्ट के तथाकथित मृत्यु क्षेत्र में ऑक्सीजन के बिना थे ! समुद्र तल से २६००० फीट ऊपर पहाड़ का वह हिस्सा जहां हवा में ऑक्सीजन की मात्रा मानव जीवन को बनाए रखने के लिए पर्याप्त नहीं है। लेकिन बेन येहुदा को कभी यह ख्याल नहीं आया कि वे पर जायेंगे ! वह कहते हैं, ”मुझे लगा कि मैं पहाड़ पर नहीं मरूंगा.” ! इरमाक के साथ उतरते समय, बेन येहुदा का सामना अपने गाइड पेम्बा से हुआ ! जो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गया कि नदाव ने शिखर पे पहुंचने का निर्णय छोड़ दिया था !
यहाँ पर और एक किस्सा था ! दोनों जानते थे कि इरमाक की सहायता के लिए दूसरा बचावकर्ता जोड़ना अव्यावहारिक था ! बेन येहुदा ने पेम्बा को अलग कर दिया और इजरायली बेहोश तुर्क को लेकर अकेले ही नीचे उतरे !

बचाव के बाद की बेन येहुदा की चिकित्सीय स्थिति !

२० मई की रात को कैंप फोर में वापस पहुंचने पर, बेन येहुदा को इरमाक की तरह ही बचाव की बहुत जरूरत थी ! शिविर से सौ गज की दूरी पर बेन येहुदा बर्फ में गिर गया ! शीतदंश के कारण उसका दाहिना हाथ फूल गया था ! उसके गालों में बड़े-बड़े छेद हो गए थे और उसके पैरों को लकवा मार गया था ! सौभाग्य से, शिविर में चिकित्सा टीमों ने तेजी से प्रतिक्रिया की और उन दोनों को उनकी जान बचाने के लिए आवश्यक आपातकालीन उपचार दिया ! एक घंटे तक आराम करने के बाद, इरमाक को होश आ गया, वह पहले से ही ठीक होने की राह पर था ! बेन येहुदा कहते हैं, ”यह एक चमत्कार था” ! उन्होंने बचाव हेलीकॉप्टरों को बुलाया और अंततः वह और इरमाक काठमांडू पहुंचे !

युवा पर्वतारोही के लिए सबसे कठिन हिस्सा अभी शुरुआत थी ! “कोई एड्रेनालाईन नहीं था, कोई सपना नहीं था ! मैं यह सारा भार उठा रहा था ! मैं असमंजस में था !” घर पर अपने माता-पिता ने फोन करके उनसे शीतदंश से निपटने के बारे में डॉक्टरों से सलाह लेने को कहा ! डॉक्टरों ने सुझाव दिया कि वह तुरंत इज़राइल लौटें और उचित चिकित्सा प्राप्त करें ! इज़राइल में, बेन येहुदा को डॉक्टरों ने उनके दाहिने हाथ की चार उंगलियाँ काटने का सुझाव दिया ! उनकी सलाह को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि वह अपनी उंगलियों को सामान्य होने के लिए समय देना पसंद करेंगे ! बाद में, जैसे ही उंगलियां ठीक होने लगीं, चिकित्सकों ने उनमें से दो की नोकें काटने का प्रस्ताव रखा ! उनका बायां हाथ, जबकि पहले असंवेदनशील था, अब अच्छी तरह से ठीक हो रहा है !

“मैं डॉक्टरों से नहीं पूछता ! मैं कह रहा हूं कि उंगलियां वापस सामान्य हो जाएंगी ! अभी यही मेरा लक्ष्य है ”! उतनी ही महत्वपूर्ण बात यह है कि, बेन येहुदा को चिंता है कि ऑक्सीजन मास्क के बिना मृत्यु क्षेत्र से यात्रा करने से उनके मस्तिष्क की कोशिकाएं मर सकती हैं ! “मुझे यकीन है कि मेरा आईक्यू ४० अंक गिर गया है,” ! वह चुटकी लेते हुए उम्मीद करते हैं कि वह गलत हैं। बेन येहुदा को चिंता है कि इरमाक को मस्तिष्क क्षति भी हुई होगी। “हमें नहीं पता कि वह ठीक होगा या नहीं,” ! वह अपने बचाए गए दोस्त के बारे में कहता है, जो अब तुर्की में स्वस्थ और तनावमुक्त है !

बेन येहुदा तुरंत नायक बन गए !

जब अन्य एवरेस्ट पर्वतारोहियों के बीच यह बात फैल गई कि एक युवा इजरायली ने शिखर पर पहुंचने के अपने सपने को पूरा करने के बजाय किसी की जान बचाई है, तो बेन येहुदा तुरंत नायक बन गए ! एक ऐसी उपाधि जिसे उन्होंने दृढ़ता से अस्वीकार कर दिया ! वह कहते हैं, ”मेरा लक्ष्य हीरो बनना नहीं, बल्कि इजराइल को पहाड़ों पर वापस लाना था” ! “मैं हीरो नहीं हूं लेकिन मैं पूरी तरह से इजरायली हूं” ! फिर भी, जब एक ब्रिटिश अखबार ने उनकी एवरेस्ट यात्रा को असफल बताया तो बेन येहुदा भड़क उठे ! बेन येहुदा को उम्मीद है कि लोग समझेंगे कि उनके लिए दुनिया के शीर्ष पर पहुंचने से ज्यादा महत्वपूर्ण जीवन बचाना था ! “हम इजरायली हमेशा अच्छे पक्ष में होते हैं ! इस बार हम उस पक्ष में थे जिस पक्ष में हम हर बार होना चाहते हैं ! मैं शिखर तक नहीं पहुंच सका, लेकिन मैंने किसी की जान बचाई !”

एवरेस्ट पर्वतारोही नियमित रूप से पहाड़ पर मरने वालों को बचाने की कोशिश करने से बचते हैं ! ऐसा करने से वे और बचाव की आवश्यकता वाले उनके साथी दोनों मारे जाएंगे ! और यह उन्हें अपने सपनों को हासिल करने से रोक देगा ! २४ साल की उम्र से पर्वतारोही रहे बेन येहुदा के लिए नैतिक दुविधा कष्टकारी थी ! लेकिन, जैसा कि वे जेरूसलम रिपोर्ट को बताते हैं, इसका उत्तर सरल था ! वह कहते हैं, ”अयदीन इरमाक मेरा दोस्त था !”

बोध !

यह पता नहीं है , उस दिन नदव शायद पर्वत पर चढ़ने में सफल हो जाता या नहीं ! वह भविष्य में इस लक्ष्य को प्राप्त कर भी सकता है और नहीं भी ! लेकिन वह हमेशा ऊंची हुई गर्दन के साथ खुद को आईने में देख सकेगा ! अपने परिवार, दोस्तों से आंखों में आंखें डालकर मिल सकेगा ! और दूसरे की जान बचाने का अलौकिक संतोष हमेशा उसके सीने में रहेगा ! इसमें कोई शक नहीं कि नदाव बेन येहुदा (Nadav Ben Yehuda) आज दुनिया भर के लोगों के मन में सबसे ऊंचे शिखर पर बैठे होते, भले ही वो पहाड़ पर न चढ़े हो !
नदाव वास्तविक जीवन का अद्वितीय प्रतीक है जो दर्शाता है – इंसानियत जिंदा है – एवरेस्ट की चोटी पर भी !
Credits:
1. PHOTO IMGAE GOOGLE.
2. THE JERUSALEM POST

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