भारतीय भोजन विधि का वैज्ञानिक रहस्य और उसके फायदे !
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भारतीय संस्कृति फर्श पर बैठकर भोजन करने की शैली पर जोर देती है। यह शैली भोजन लेते समय होने वाली गतिविधियों के कारण भोजन को पचाने में मदद करती है।
शास्त्रों में पैर धोकर तथा एक वस्त्र ऊपर ओढ़कर और फिर पूर्व अथवा उत्तर आदि मुख बैठकर एकान्त में भोजन करना बतलाया गया है !
भोजन का स्थान पवित्र, गोमय आदि से लिपा हुआ अथवा जल आदि से शुद्ध होना चाहिए, अपवित्र व्यक्ति का सम्पर्क न होना चाहिए।
पूर्व दिशा से प्राणशक्ति का उदय होता है। सूर्य देवता प्राणस्वरूप हैं, जो इस दिशा से उदय होते हैं। अतः इस पूर्व दिशा की ओर मुख करके भोजन करने से आयु बढ़ेगी।
दक्षिण की ओर पितृ देवताओं का वास रहता है उस ओर मुख करके भोजन करने से यश प्राप्त होता है। भोजन करते समय दिशा तथा शैली का ध्यान रखे !
सिर पर टोपी तथा साफा आदि धारण किये हुये और पैरों में जूता पहने हुये भी भोजन नहीं करना चाहिये। इसका रहस्य यह है कि भोजन करते समय जो क्रिया होती है उससे शरीर में ऊष्मा (गरमी) पैदा होती है।
ऊष्मा के निकलने के दो ही मार्ग हैं एक तो सिर और दूसरा पांव। यदि ये दोनों ही बन्द या ढके होंगे तो ऊष्मा निकलने के लिए जोर लगावेगी ! अतः कुपित होकर शरीर / स्वास्थ्य को हानि पहुंचायेगी।
पैरों में जूता चर्ममय होने से दुर्गन्धित परमाणु फैलते रहेंगे तथा उष्मा नहीं निकलने पायेगी ! जबकि कहा गया है कि गीले और सिर्फ खुले पैर से भोजन करना तथा परोसना चाहिये।
भोजन के बाद यह ऊष्मा अच्छी तरह निकल जाय इसीलिए यह भी कहा गया है कि भोजन करने के पश्चात् लघुशंका कर लेनी चाहिए।
इस प्रकार यह सारी क्रियायें विज्ञान की कसौटी पर कस कर ऋषियों ने हमारे लाभ के लिए बनाई हैं। आइए हम अपने लाभ के लिए इसका पालन करें।
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