हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक ने प्राण देकर उनकी जान बचाई थी, ये सुना है ! लेकिन क्या आपने शुभ्रक घोड़े के बारे में सुना है? चलिए जानते है !
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मेवाड़ के राजकुमार कर्ण सिंह के पास, शुभ्रक नाम का घोड़ा था, जिसने प्राणों की बलि देकर कर्ण सिंह को कुतुबुद्दीन ऐबक की कैद से आज़ाद कराया था !
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कुतुबुद्दीन ऐबक मेवाड़ के राजा की हत्या कर, राजकुमार कर्ण सिंह को बंदी बनाकर, लूटी हुई धनराशि और राजकुमार के घोड़े शुभ्रक को लाहौर ले गया था !
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जब राजकुमार ने भागने की कोशिश की और पकड़े गए. तो ऐबक ने राजकुमार का सर काट कर ,कटे सर से पोलो जैसा खेल खेलने का आदेश दिया.वो खुद भी शुभ्रक पर सवार हो कर खेलने पहुंचा !
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शुभ्रक ने उसी क्षण अपने मालिक कर्ण सिंह को पहचान लिया और चित्तकार करने लगा ! कुछ ही क्षणों में शुभ्रक बेकाबू हो गया और उसने ऐबक को ज़मीन पर पटक दिया !
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ऐबक को बिनाे संभलने का मौका दिए उसके सिर और छाती पर अपने मज़बूत खुर्रों से ज़बरदस्त प्रहार करने लगा.! कुछ ही प्रहारों से ऐबक की वहीं तत्काल मृत्यु हो गई ! सभी स्तब्ध रह गए. !
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शुभ्रक विद्युत गति से अपने मालिक की ओर दौड़ा और जैसे ही राजकुमार उस पर सवार हुए शुभ्रग ने अपने जीवन की सबसे कठिन यात्रा शुरू की ! शुभ्रग तीन दिनों तक लगातार दौड़ता रहा और सीधा मेवाड़ के प्रवेश द्वार पर जाकर रुका !
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जब राजकुमार घोड़े से उतरे तो शुभ्रक मूर्ति की तरह खड़ा रह गया ! राजकुमार ने ज्यों ही हाथ से उसका सिर सहलाया, शुभ्रक, ज़मीन पर गिर पड़ा ! प्राण त्यागने से पहले उसने अपने मालिक को सुरक्षित अपने राज्य में पहुंचा दिया था !
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हमने चेतक की स्वामी भक्ति की अनेकों कहानियां सुनी है.पर शुभ्रक की यह कहानी हममें से अधिकतर लोग ने नहीं सुनी है, सुनी है क्या?